नका मतलब था कि जो लोग अपने विचारों एवं बुद्धिमत्ता से समाज को प्रभावित करने की शक्ति रखते हैं वही ब्राह्मण हैं। पूर्व में वेद लिखने वाले ब्राह्मण थे, अब अख़बारों में संपादकीय लिखने वाले ब्राह्मण हो सकते हैं। जो विद्वान हैं और बुद्धिजीवी हैं, वो ब्राह्मण हैं। ये जाति नहीं, वर्ग है, क्लास है।
मोटिवेशनल स्पीकर विवेक बिंद्रा विवादों में हैं। विवेक बिंद्रा मार्केटिंग और बिजनेस सिखाने का काम करते हैं, अपन वीडियो के जरिए लोगों को मोटीवेट करते हैं और अक्सर विवादों में भी रहते हैं। इसी तरह उनका एक नया मोटिवेशनल स्पीकर संदीप माहेश्वरी के साथ भी विवाद चल रहा है। उन पर अपनी पत्नी को पीटने का भी मामला दर्ज है। ऊपर से आरक्षण को लेकर दिए गए उनके बयान के बाद उनके खिलाफ खूब हो-हंगामा मचाया जा रहा है। मीम-भीम वाले कह रहे हैं कि उन्होंने दलितों के खिलाफ बयान दिया है।
आइए, पहले जानते हैं कि विवेक बिंद्रा ने कहा क्या था। लगभग 1 वर्ष पहले उन्होंने ‘द लल्लनटॉप’ को एक इंटरव्यू दिया था और उस वीडियो में उन्होंने आरक्षण व जाति व्यवस्था पर अपनी बात रखी थी। उन्होंने कहा था कि राजनीतिक लोगों ने दलित-महादलित का विभाजन कर दिया है और वो कहते हैं कि इसका वोट बैंक हमारा है, उसका वोट बैंक हमारा है। उन्होंने कहा था कि नेता महादलित की एक अलग कैटेगरी बना देते हैं, फिर कहते हैं कि वो ही महादलितों के नायक है, वही उनका उद्धार करेंगे।
गुण एवं कर्म के आधार पर समाज का विभाजन: विवेक बिंद्रा
विवेक बिंद्रा का कहना था कि आप महादलितों के अधिकार के लिए लड़िए, लेकिन उन्हें सक्षम बनाने पर काम कीजिए। उन्होंने जो सक्षम बनता जा रहा है उसे आगे बढ़ाने की बात करते हुए इसे मेरिट करार दिया था। उन्होंने कहा था कि सब कुछ फ्री में देकर किसी को बदहाल नहीं बनाना है, बल्कि उसे खुशहाल करना है। बकौल विवेक बिंद्रा, सभी को हिस्सेदारी नहीं मिले बल्कि उसे मिले जो सक्षम है भले ही वो किसी भी जाति, धर्म, तबके या वित्तीय समूह से आता हो।
विवेक बिंद्रा ने ये भी कहा था कि कई बार लोग भगवद्गीता में हिंदूवाद या जातिवाद सिखाया गया है, लोग अज्ञानतावश ऐसी बातें करते हैं। उन्होंने इसका जवाब देते हुए कहा कि भगवान श्रीकृष्ण ने चतुर्वर्ण को स्वयं से उत्पन्न हुई व्यवस्था बताते हुए कहा था कि गुण-धर्म के हिसाब से इसका विभाजन होता है। उन्होंने समझाया था कि जन्म के हिसाब से विभाजन श्रीकृष्ण ने नहीं दिया, आज के नेताओं ने जन्म के आधार पर विभाजन किया – तुम ब्राह्मण के बेटे हो तो ब्राह्मण, तुम शूद्र के बेटे हो तो शूद्र।
विवेक बिंद्रा ने कहा था, “गुण का मतलब हुआ साइकोलॉजी और कर्म मतलब फिजियोलॉजी। साइको-फिजिकल नेचर के हिसाब से डिसाइड किया जाएगा कि कौन क्या करेगा। क्या जज का बेटा बिना पढ़ाई किए जज बन जाता है? वकील का बेटा वकील बन जाता है? उसे जज का गुण-कर्म चाहिए, उसे वकील का गुण-कर्म चाहिए। क्षमता और रुचि के हिसाब से आगे बढ़ना चाहिए, इसे ही मेरिटोक्रेसी कहते हैं। समाज तभी सही बनेगा जब आप काबिल को आगे बढ़ाओगे, सबको नहीं।”
उन्होंने आगे समझाया था कि जो काबिल बन जाएगा वो खुद सबको आगे बढ़ाएगा। मोटिवेशनल स्पीकर ने कहा था कि हर एक को ब्राह्मण नहीं बनाना है। इसके बाद उन्होंने ब्राह्मण का अर्थ ‘इंटेलेक्चुअल क्लास ऑफ सोसाइटी’, क्षत्रिय मतलब ‘एडमिनिस्ट्रेटिव क्लास’, वैश्य मतलब ‘मर्चेंट क्लास’ और शूद्र मतलब ‘असिस्टिंग क्लास’ बताया था। उन्होंने कहा था कि ये लोग माइंस वन हैं, जो कभी नंबर वन नहीं हो सकते, उन्हें लीडर मत बनाइए। उन्होंने कहा था कि ‘शूद्र’ निर्णय नहीं ले सकते, लेकिन निर्णय को लागू बहुत अच्छे से करवा सकते हैं।
विवेक बिंद्रा ने SC-ST समाज के खिलाफ कुछ नहीं कहा
विवेक बिंद्रा के बारे में लोगों की अलग-अलग राय हो सकती है, उनकी बातें लोगों को बेवकूफाना लग सकती हैं। लेकिन, यहाँ उन्होंने जो बातें की हैं उसमें उन्होंने किसी जाति विशेष को निशाना नहीं बनाया है। उन्होंने अनुसूचित जाति या जनजाति के संबंध में कोई बुरी बात नहीं कही है। उन्होंने यहाँ जाति नहीं बल्कि क्लास की बात की है। क्लास, अर्थात गुण-कर्म के हिसाब से विभाजित किए गए वर्ग जिनके बारे में उन्होंने समझाया भी कि जज का बेटा बिना पढ़ाई किए जज नहीं बन सकता।
उनके उदाहरण को और समझने की कोशिश करते हैं। उनका मतलब था कि जो लोग अपने विचारों एवं बुद्धिमत्ता से समाज को प्रभावित करने की शक्ति रखते हैं वही ब्राह्मण हैं। पूर्व में वेद लिखने वाले ब्राह्मण थे, अब अख़बारों में संपादकीय लिखने वाले ब्राह्मण हो सकते हैं। जो विद्वान हैं और बुद्धिजीवी हैं, वो ब्राह्मण हैं। ये जाति नहीं, वर्ग है, क्लास है। जो लोग किताबें लिख रहे हैं और किताबों को पढ़ कर लोग प्रभावित हो रहे हैं, तो वो लेखक भी ब्राह्मण हो गए।